लेखनी कहानी -24-Jan-2022
शहर रैन-बसेरा
चल परदेशी घर अपने लौट के जाना है ये शहर तो है रैन बसेरा
यहां कोई किसी को नहीं पहचानता , कौन है तेरा कौन मेरा ।
गांव पड़ी है ज़मीन बंजर मेरी ना था उसपे कुछ पनप रहा,
सोचा शहर में जाएंगे कुछ कमाएंगे कोई वहां भी बनेगा मेरा।
लम्बी सड़कें , लम्बी - लम्बी गाड़ियां , बड़े - बड़े घर हैं यहा,
उन बड़े घरों के लोगों के दिलों में नहीं बना पाया घर मैं मेरा ।
पैसे के अमीर लोग दिलों के ग़रीब हैं नाम के रिश्ते बनाते हैं
असली रिश्तेदारों से काटते कन्नी कोई नहीं किसी का चचेरा-ममेरा ।
चल मुसाफिर उस मिट्टी में , उसी पे हाथ आजमाएंगे मेहनत की खाएंगे,
क्या करूं इस शहरी ज़िंदगी का ,जहां कोई नहीं अपना ये है रैन बसेरा ।
प्रेम बजाज
जगाधरी यमुनानगर
Gunjan Kamal
04-Apr-2022 01:22 AM
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति 👌🙏🏻
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